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सुबह उठते ही मन में घबराहट होने लगी, एक सपना देखा था बहुत ही डरावना, बीसलपुर बांध, टिहरी बाँध, भाखड़ा नाँगल बाँध और नर्मदा बाँध साथ टूट गये, दिल्ली हरियाणा तक पानी ही पानी हो गया, राजस्थान बिन पानी के तड़पने लगा, पंजाब से चीख पुकारें सुनाई देने लगी गुजरात मध्यप्रदेश के लोग सोते सोते ही मर गये. एक दम से नींद खुल गयी दिल दहल गया, रोंगटे खड़े हो गये सांस धीमे चलने लगी। इतना खतरनाक सपना ईश्वर कभी ना दिखाये और वास्तविकता मैं तो कभी भी नही। पर हम ने तो विनाश के बीज बो ही रखे हैं, फिर अखबार पढ़ा तो पता चला कि जयपुर, अजमेर, टोंक व कुछ अन्य जिले जिस बाँध से पानी पीते हैं वहां रोज़ 2 सेंटीमीटर जलस्तर कम होता जा रहा है और अगर २ साल बरसात नहीं आये तो इन सब जिलों के लोग पानी नहीं मिलने के कारण मर जायेंगे।
सरकारें कितनी अदूरदर्शी हो सकती हैं, लोग कितने लालची सकते हैं, समाज कितना असंवेदनशील व बेवकूफ़ हो सकता है ये समझ आ रहा है। जयपुर की लाइफ लाइन कहलाने वाला रामगढ़ बाँध जयपुर के लोगों के द्वारा ही मार दिया गया, निरंतर बहती गंगा और यमुना को शांत कर के गटर बना दिया गया, हर शहर के नीचे की जमीनों से पानी सोख लिया गया और उन्हें खोखली कर दिया गया और अब भी सुध नहीं है।
क्या करेंगे हम मैट्रो का, बुलेट ट्रेनों का, आठ लाइन की सुपरफास्ट सड़कों का, नये-नये हथियारों का, सोने के गहनों,LED टीवी और बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं का जब पीने का पानी नहीं होगा और पानी की वजह से अन्न पैदा नहीं होगा?
आम आदमी अपने आप को अब भी इन सब प्रश्नों के उत्तर ढूंढने में बेबस व लाचार समझता है। बस एक ही बार उसके हाथ काम करते हैं वोटिंग मशीन में उंगली रखने के फिर वो सोचता है जिस के निशान पर उंगली रखी है वो कुछ करेगा पर ये आशा, आशा ही रह जाती है। और जो लोग कुछ कर सकते हैं उनके लिए तो पैक्ड पानी हमेशा available रहता है तो वो ये सब सोचने की ज़हमत क्यों करने लगें।
फिर ये सब कौन सोचेगा और कौन करेंगा? कौन जिम्मेदार है गंगा, यमुना, नर्मदा, और छोटी बड़ी बहुत सी नदियों की हत्या का, कौन जिम्मेदार है रामगढ़ की मौत का और खुद को व अन्य नागरिकों को आत्महत्या की ओर ढकेलने का?? और अब जो स्थिति बन गयी है उसे कौन सुधारेगा? ये बड़े बड़े बाँध बनना और छोटी नदियों, तालाबों, बांधों का सूखना देश की सुरक्षा की दृष्टि से भी घातक है और विनाश की दिशा में विकास है। समय रहते इस विकास की दिशा नहीं बदली तो फिर हमें तैयार रहना चाहिये अनदेखे, अनजाने, अनसुने खतरे को सहन करने के लिये क्यों कि उस वक़्त हम कुछ कर नहीं पायेंगे।
सजा दो उन को जो ज़िम्मेदार हैं इस परिस्थिति के, बच्चे पैदा करने की जगह पेड़ लगाओ, जमीन से पानी सोखने की जगह जमीन को पानी पिलाओ, एक-एक बूँद बचाओ, मंदिरों मैं फूलों को तोड़ के चढाने की जगह मंदिर परिसर को ही फूलों के पेड़ों से भर दो ताकि भगवान को भी हमेशा ताजा फूलों की खुशबू आये। और जो भी कर सकते हैं वो करना शुरू करो, सोचो दिमाग लगाओ और काम पर लग जाओ नहीं तो अगली पीढ़ी का इन्तजार नहीं करना पड़ेगा ये पीढ़ी ही तड़प तड़प के मरेगी।
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