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एक महान पर्यावरणविद् – श्री कृष्ण

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भगवान कृष्ण के मानवीय रूप का मानवीय आधार पर अगर विश्लेशण करें तो बहुत सी अचंभित करने वाली बातें समझ आती हैं।

श्री कृष्ण ने सभी पर्यावरण के तत्वों की रक्षा करी और सभी को बढाया। श्री कृष्ण ने प्रकृति के पांचों तत्वों को शुद्ध किया उन्होने कालिया नाग को मार कर जल तत्व को शुद्ध किया यमुना नदी को गन्दा होने से बचाया, त्रिणावतार को मार कर वायु तत्व को शुद्ध किया उसे जहरीली होने से बचाया, व्योमासुर को मार कर आकाश तत्व को शुद्ध किया, दावानल अग्नि को पी कर अग्नि तत्व को शुद्ध किया जंगलों को बचाया और मिट्टी खा के पृथ्वी तत्व को शुद्ध किया। इन सब कहानियों में राक्षस एक प्रतीक है प्रकृति को दुषित करने वाले कारणों का और उन सब का वध करना मतलब उन कारणों को दूर करना है।

श्री कृष्ण ने सिर्फ इतना ही नहीं किया, बृज में जमीन के अंदर का पानी खारा है इसलिये वहा सिर्फ वर्षा जल पर ही निर्भर रहा जा सकता है, शास्त्रो के अनुसार बृज में लघभग 1000 कुण्ड हैं जिन मैं से अधिकतर आपस में जुडे हुये है ताकि कही पर भी पानी की कमी और पानी की अधिकता से नुकसान ना हो जाये, अकेले गोवर्धन पर्वत के चारों तरफ 56 कुण्ड बनवाये और वो भी सब आपस में जुडे हुये ताकि बाढ का खतरा नहीं रहे और जो कुण्ड खुडने से मिट्टी निकली उससे कुछ ऊँचा स्थान बना के जमीन उठा ली जो की अधिक पानी के समय बचने के काम आ सके ।

श्री कृष्ण ने पशुधन की रक्षा व उस को बढाने के लिये गायें चरायी और इस बहाने ग्वालबालों की एक फौज खडी कर ली उस दुष्ट शाषक से लड़ने के लिये जो जनता के साथ अत्याचार करता था।
आज के परीपेक्ष्य में देखा जाये तो हम सब लोग प्रकृति के विपरीत काम करे जा रहे हैं छोटे से बृज में 1000 कुण्ड थे और आज के बड़े बड़े मेट्रोस में 1 छोटा सा पानी का सोर्स देखने को नहीं मिलता बस बारिश के टाइम पर सडको और शहर के गंदे नालो में पानी दिख जाता है। नदिया इस से गंदी नहीं हो सकती जितनी इन शहरों के पास है गटर के नाले जैसी नदिया हम लोगों ने बना दी है। आज सांस लेने के लिये शुद्ध वायु नहीं है पीने के लिये शुद्ध पानी नहीं है आकाश तक में हम ने कचरा फैला दिया है। धरती का सब कुछ छीन लिया है उसे खोखला कर दिया है, श्री कृष्ण भी सोचते होंगे की मेरी पूजा तो बहुत करते है लेकिन हैं तो सारे नास्तिक, पता नहीं कब हम सुधरेंगे। विकास की किस अवधारणा को ले कर प्रकृति के साथ खिलवाड करे जा रहे हैं इस अवधारणा पर पुनर्विचार करना होगा अन्यथा हम सब लोग बड़ी मुश्किल में फसने वाले हैं। और अभी कोई कृष्ण भी नहीं खडे हमे बचाने के लिये।

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